زن ایده ئال
انتوان چیخوف
برگردان متن روسی: مهدی
زرتشت
خانهای که در آن زندگی
میکنم، روبری یک خانه طوسی بزرگ قرار دارد. هر روز صبح دم پنجره این خانه طوسی
بزرگ، زن جوانی را میبینم.
حقیقتاً او برای من مثل
آفتاب است! احساس میکنم که او را دوست دارم! بلافاصله میگویم: من او را دوست
دارم نه به این خاطر که زیباست، صرف بخاطر هوش والایش.
هر صبح زود من شاهدم که
زن چگونه روزنامهها را از روی میز بر میدارد و بعد آنها را با عجله تمام میخواند.
در همین موقع من به چهره او نگاه میکنم. صورتش احساسات گوناگونی به من میدهد. بعضی
وقتها او خوشحال است، لبخند میزند و میخندد. بعضی وقتها میبینم که چطور نومید
و آشفته است. او گریهاش را شروع می کند... هرگز ندیدم که بیتفاوت باشد.
من از رواشناسی زیاد نمیدانم،
ظاهرش طوری است که فکر میکنم میتوانم احساس او را درک کنم. زمانی که به چهره و
لبخندش نگاه میکنم، فکر میکنم:
-
پس در روزنامه امروز
خبرهای خوشی است. در کشور همه چیز مرتب و روبراه است! من خیلی خوشحال میشوم. چه
قدر عالی است، خانم که این چنین احساس والای در برابر کشورش دارد!
زمانی که میبینم او ناراحت
است و گریه میکند، با خودم فکر میکنم:
-
هان، پس در کشور همه چیز
مطابق میل نیست. رقت انگیزه. اما عجب خانمی!
من او را دوست دارم. هر
روز صبح کنار پنجره میایستم و منتظر میمانم تا او را ببینم. شبها نمیتوانم
بخوابم، مرتباً در مورد او فکر میکنم، غریبه دوست داشتنی من. این عشق است!
تابستان، درست موقعی که
پنجرههای خانه مان باز بود، من برای دفعات مکرر صدای خنده یا اینکه گریه او را
شنیدم. حتا یک روز شنیدم که با صدای بلندی گفت:
-
پست فطرت!
و روزنامه را روی اتاق
رها کرد. عجب خانمی!
احساس کردم لازم است با
او در ارتباط به ملاقات مان صحبت کنم. به این خاطر به طرف جاروکش خیابان رفتم که
در خانه او زندگی میکرد، یک روبل به دستش دادم و از او در مورد خانم اطلاعات
گرفتم. جاروکش گفت که خانم شوهردار است، او و شوهرش بصورت غیر معمولی تأدیه
آپارتمان را میپردازند، هر روز صبح شوهرش او را ترک میکند و ناوقت شب به خانه بر
میگردد.
روز بعد کارت ملاقاتم را
برای او فرستادم.
پس از یک روز به خانه او
رفتم. موقعی که به آپارتمان او رفتم، او داشت روزنامه میخواند. تصمیم گرفتم منتظر
بمانم تا زمانی که او روزنامه را از جلو چشمش کنار بگذارد. ناگهان روزنامه را روی
اتاق انداخت و شروع کرد به گریه. پرسیدم:
-
عزیزم، چه اتفاقی افتاده،
چرا گریه میکنی؟ خبر بدی است؟ خواهش میکنم به من بگو.
خانم گفت:
-
چرا من گریه میکنم؟ نمیخواستم
گریه کنم. امروز بایستی تأدیه آپارتمان را میپرداختیم، ام م شوهر پرازیتم امروز
فقظ 60 سطر مطلب در روزنامه نوشته است. دیروز او 11 روبل و 40 پول نوشت، اما امروز
فقط 3 روبل! با این حال چگونه تأدیه آپارتمان را بپردازیم؟ من مأیوسم، شوهر حقه
باز من! او می بایستی کار کند، اما او در مهمانی دوستانش نشسته. چه بدتر اینکه من
زن یک خبرنگارم!
شکسپیر گفته است: «ای زن،
ای زن1»
و من فهمیدم که منظور او
چه بوده است!...
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1-
О
женщина, женщина!
Идеальная женщина
По рассказу: А. Чехов
Напротив дома, в котором я живу,
стоит большой серый дом. Каждое утро в этом большом сером доме в окне напротив
я вижу женщину.
Она для меня как солнце! Я чувствую,
что я люблю ее! Скажу сразу: я люблю ее не за красоту, а за ее высокий
интеллект.
Каждое утро я вижу, как она берёт со
стола газеты и спешит прочитать их. В это время я смотрю на ее лицо. Оно
показывает самые разные чувства. Иногда она счастлива, улыбается и смеется,
иногда я вижу, что она очень расстроена, она в отчаянии. Она начинает
плакать... я никогда не вижу, чтобы она была равнодушна...я немного психолог,
и, как мне кажется, я понимаю ее чувства. Когда я вижу на ее лице улыбку, я
думаю:
- А, значит, в газете сегодня
хорошие новости. В стране все в порядке! Я очень рад! Как это прекрасно, что
есть такая женщина, у которой такие высокие гражданские чувства!
Когда я вижу, что она расстроена и
плачет, я думаю:
- ну, значит, в стране все очень
плохо. Жалко. Но какая женщина!
Я люблю ее. Каждое утро я стою около
окна и жду, когда увижу ее. Ночью я не могу спать и думаю о ней, моей
прекрасной незнакомке. Это любовь!
Летом, когда ее и мои окна были
открыты, я несколько раз слышал ее смех или плач.
Однажды я даже слышал, как она громко
сказала:
- Негодяй!
И бросила газету на пол. Какая
женщина!
Я чувствую, что хочу договориться с ней
о встрече. Поэтому я сначала пошёл к дворнику, который живет в ее доме, дал ему
1 рубль и получил от него информацию о ней. Дворник рассказал, что она замужем,
что она и ее муж нерегулярно платят за квартиру, что ее муж каждое утро уходит
и приходит домой поздно вечером.
На следующий день я послал ей мою
визитную карточку. Еще через день я пришел к ней. Когда я вошел в ее квартиру,
она читала газету. Я решил подождать, пока она закончит читать. Вдруг она
бросила газету на пол и заплакала.
- Дорогая моя, что случилось? –
спросил я. Почему вы плачете? Плохие новости? Скажите мне!
- Почему я плачу? – ответила она. –
я не могу не плакать! Сегодня мы должны заплатить за квартиру, а мой паразит-
муж написал в газету только 60 строк! Вчера он написал на 11 рублей 40 копеек,
а сегодня только на 3 рубля! Как мы заплатим за квартиру? Я в отчаянии! Мой муж
негодяй! Он должен работать, а он сидит в гостях у друзей. Боже мой, как
ужасно, что я жена репортера!
«О, женщины, женщины!» - сказал
Шекспир, и сейчас я понимаю, что он хотел сказать!...
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